स्वतंत्रता का अर्थ केवल बंधनों से छुटकारा नहीं, बल्कि मुक्ति है – ऐसी मुक्ति जो प्रत्येक जीव का मौलिक अधिकार है। जब कोई मनुष्य अपने शरीर, मन, इन्द्रियों और आत्मा को किसी भी मजबूरी या दबाव से मुक्त कर लेता है, तब वह वास्तविक स्वतंत्रता को प्राप्त करता है।
सच्ची स्वतंत्रता का स्वरूप केवल बाहरी बंधनों से अलग होना नहीं है, बल्कि यह है कि हमारे मन, वचन और कर्म किसी भी दबाव, भय या स्वार्थ के वशीभूत न हों। यह स्वतंत्रता व्यक्ति को अपने स्वार्थ से परे जाकर दूसरों के हित में भी निर्भीकता और निष्पक्षता से कार्य करने की शक्ति देती है।

जब मनुष्य अपनी पक्षपातपूर्ण सोच से परे हटकर केवल सत्य, प्रेम और कल्याण की भावना से कार्य करता है, तब वह एक सच्चा मानवता-प्रेमी बन जाता है। यही वह अवस्था है जब व्यक्ति “कृष्ण” के समान हो जाता है – आकर्षण का केंद्र होते हुए भी स्वच्छंदता में नहीं बहता, बल्कि अपने स्व और परहित के संतुलन से प्रेम का संचार करता है।
कृष्ण-तुल्य स्वतंत्रता व्यक्ति को केवल आत्मकेंद्रित नहीं रखती, बल्कि उसे सम्पूर्ण समाज और विश्व का हितचिंतक बना देती है। यह स्वतंत्रता हमें सिखाती है कि प्रेम और करुणा ही विश्व में स्थायी शांति और आकर्षण के स्रोत हैं।
आज जब भारत ने अपने स्वतंत्र अस्तित्व की यात्रा को 75 से अधिक वर्षों से आगे बढ़ाया है, तब यह केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व को यह प्रेरणा देता है कि सच्ची स्वतंत्रता का अर्थ है कृष्ण की तरह आकर्षण का केंद्र बनना, परंतु स्वच्छंद नहीं होना – स्वहित और परहित के संतुलन से मानवता में प्रेम का संचार करना। स्वतंत्र भारत, विश्व को कृष्ण बनने की प्रेरणा देता है।
यह स्वतंत्रता भारत की आत्मा है, और यही भारत की ओर से विश्व को सबसे बड़ा उपहार है