आयुर्वेद, जिसे ‘जीवन का विज्ञान’ कहा जाता है, विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह न केवल रोगों से रक्षा वि उनका उपचार करता है, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और आत्मिक उन्नति को भी बढ़ावा देता है। प्राचीन ग्रंथों में इसे ‘त्रय उपस्थंभ’ (आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य) के आधार पर स्वास्थ्य के संचालन की एक समग्र पद्धति के रूप में प्रत्येक आयु और समग्र मानवता के हिट हेतु प्रस्तुत किया गया है (Sharma, 1996)।
आधुनिक विज्ञान अब धीरे-धीरे आयुर्वेद के सिद्धांतों को स्वीकार कर रहा है और इन पर शोध कार्य बढ़ रहा है। हालाँकि आधुनिक कई दर्दनाशक, आदि जो मुख्यतः रासायनिक नहीं है, का उदगम वानस्पतिक और कहीं ना कहीं प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों से ही हुआ है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता पर बल दिया है। भारत सरकार भी विभिन्न योजनाओं और संस्थानों के माध्यम से आयुर्वेद को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थापित करने की दिशा में कार्यरत है।
भविष्य की संभावनाएँ और चुनौतियाँ
आयुर्वेद को वैश्विक चिकित्सा पद्धति के रूप में स्थापित करने के लिए कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं:
1.वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी – अधिक अनुसंधान और क्लिनिकल ट्रायल्स की आवश्यकता।
2.गुणवत्ता मानकों की असमानता – सभी आयुर्वेदिक उत्पादों को WHO-GMP मानकों के अनुसार तैयार करना।
3. आयुर्वेद- आधुनिक चिकित्सा शिक्षण प्रणाली का सम प्रमाणित होना – आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक का उचित एवं आधुनिक चिकित्सा अध्यन प्रणाली की समतुल्यता आयुर्वेद शिक्षण में अति आवश्यक है।
4.वैश्विक स्वीकृति – पश्चिमी देशों में पारंपरिक चिकित्सा को अपनाने की गति धीमी है, जिसे सरकार के समर्थन और घरेलू अर्वाचीन- प्राचीन चिकित्सा प्रणाली के मानवता के हित में परस्पर द्वेष- विद्वेष को भुला एक दूसरे के पूरक बन सम्पूर्ण एक स्वास्थ्य की नियत से तेज किया जा सकता है